Budget 2020: क्या हेल्थ सेक्टर को किए गए वादों को पूरा कर पाएगी सरकार?

Budget 2020: क्या हेल्थ सेक्टर को किए गए वादों को पूरा कर पाएगी सरकार?

नरजिस हुसैन

बजट 2020-21 में स्वास्थ्य क्षेत्र को जो 69000 करोड़ सरकार ने दिए हैं उन्हें अगर पिछले बजट से तुलना की जाए तो यह महज 4.1 प्रतिशत मानी जा रही है। इसे अगर विभागीय स्तर पर देखा जाए तो स्वास्थ्य और पिरवार कल्याण मंत्रालय ने 65,012 करोड़ रुपए स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग को दिए जबकि स्वास्थ्य रिसर्च विभाग के खाते में 2,100 करोड़ रुपए आए और आयुष मंत्रालय को 2,122 करोड़ रुपए आवंटित किए गए हैं। सरकार ने जो भी थोड़ा खर्च करने की हिम्मत दिखाई तो वह प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा योजना को देखकर लगा। बाकी केन्द्र के साथ मिलकर राज्यों में जो योजनाएं चल रही हैं उनको न कुछ मिला और न ही उन्होंने कुछ गंवाया।

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4.1 फीसद की वित्तीय बढ़त और 2020-21 के दौरान नाममात्र के सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी की जो संभावना दिखाई जा रही है उसे देखकर पता चलता है कि जीडीपी में स्वास्थ्य क्षेत्र में सरकार की भागीदारी घटी है। 2025 तक सार्वजनिक स्वास्थ्य पर जिस 2.5 प्रतिशत जीडीपी के खर्च की उम्मीद की जा रही थी यह स्थिति इसके ठीक उलट है जो अच्छा संकेत नहीं है। हालांकि, पिछले पांच साल के बजट से अगर इस बजट की तुलना की जाए तो मालूम होता है कि सरकार ने फंड करीब दोगुने किए। केन्द्रीय योजनाओ को 2015-16 जहां 35,000 करोड़ रुपए मिल रहे थे वहीं 2020-21 के बजट तक यह राशि बढ़ाकर 70,000 करोड़ रुपए तो कर दी गई लेकिन, 2025 तक जो इस क्षेत्र में जीडीपी का 2.5 प्रतिशत लक्ष्य है उसे हासिल करना अभी भी मुश्किल लग रहा है।

पिछले कुल सालों में सार्वजनिक स्वास्थ्य पर जीडीपी का सिर्फ एक फीसद ही सरकार खर्च कर रही है। हालांकि, यह खर्च केन्द्र और राज्यों को मिलकर उठाना होता है और 15वें वित्त आयोग की रिपोर्ट बताती है कि भारत में राज्य इस लिहाज से ज्यादा अच्छा काम कर रहे है। देश में राज्यों के बजट का दो-तिहाई हिस्सा स्वास्थ्य सुविधाओं पर खर्च हो रहा है जो उनकी प्राथमिकता दिखाता है। जीडीपी में स्वास्थ्य क्षेत्र पर खर्च नहीं बढ़ रहा है जो न सिर्फ इंडस्ट्री के लिए हताश करने वाला है बल्कि सरकार की इस क्षेत्र के प्रति मंशा भी जाहिर करता है। क्योंकि जब तक सरकार इस क्षेत्र में खर्च नहीं बढ़ाएगी स्वास्थ्य सुविधाएं आम आदमी की पहुंच से दूर बनी रहेगी जो अपनी अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा नहीं है। सरकार को चाहिए कि सार्वजनिक स्वास्थ्य क्षेत्र में बुनियादी ढांचे के साथ ट्रेंड स्टाफ पर निवेश करे जो फिलहाल बहुत जरूरी है।

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उधर, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन यानी आईएमए ने स्वास्थ्य बजट को इतना छोटा बताया जिसका कोई भी असर दिखना मुश्किल है। लगातार बढ़ती मुद्रास्फीति के चलते दिए गए पैसों का कितना सही इस्तेमाल हो पाएगा यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा। आयुष्मान भारत को 6400 करोड़ मिले हैं जिसे एसोसिएशन का मानना है कि 1,6,000 करोड़ होना चाहिए था क्योंकि इस योजना के तहत  जो 20,000 अस्पताल आते हैं जहां से क्लेम जाता है वह सभी सरकारी अस्पताल हैं। पीपीपी मॉडल के तहत 112 जिलों में जो अस्पताल बनाए जाएंगे इन्हें एसोसिएशन कॉरपोरेट सेक्टर को बैकडोर एंट्री का नाम दे रहा है जिसके समर्थन में वे नहीं हैं। फिर बजट में नर्सों की और ट्रेनिंग की जो बात कही गई है वह ठीक नहीं है क्योंकि देश में प्रशिक्षित डॉक्टरों का पहले से ही अभाव है और मेडिसिन और नर्सिग दो अलग-अलग पेशे हैं।

सरकार का लगातार ये सांतवा बजट है और उसमें खासकर स्वास्थ्य की बात की जाए तो घोषणाएं तो खूब की गई लेकिन, साल-दर-साल इन घोषणाओं की हकीकत सबके सामने आती गई। सिर्फ पैसा देना ही काफी नही है बल्कि किसको कहां और कितना मिला है उस का हिसाब और उसकी वक्त रहते जरूरत सरकार को समझनी ही होगी नही तो वह अपने लक्ष्यों से भटकती ही रहेगी।

 

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